कबीर दोहा
कबीरा गर्व न कीजिये काल गहे कर केस
ना जाने कित मारे है क्या देस क्या परदेस
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कबीर दोहा
कबीरा गर्व न कीजिये काल गहे कर केस
ना जाने कित मारे है क्या देस क्या परदेस
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कबीर दोहा
कबीरा गर्व न कीजिये ऊंचा देख आवास
काल परों भुई लेटना ऊपर जमसी घास
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कबीर दोहा
जीवत समझे जीवत बूझे जीवत ही करो आस
जीवत करम फांस न काटी मुए मुक्ति की आस
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कबीर दोहा
पोथी पड़ पड़ जग मुआ पंडित भयो न कोए
ढाई आखर प्रेम के जो पड़े सो पंडित होए
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कबीर दोहा
कबीरा खडा बाजार में मांगे सबकी खैर
ना काहू से दोस्ती ना काहू से वैर
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कबीर दोहा
बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर
पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर
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कबीर दोहा
धीरे धीरे रे मना धीरे सब कुछ होए
माली सींचे सौ घड़ा ऋतु आए फल होए
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कबीर दोहा
ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोए
अपना तन शीतल करे औरन को सुख होए
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कबीर दोहा
काल करे सो आज कर आज करे सो अब
पल में परलय होएगी बहूरी करोगे कब
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कबीर दोहा
चलती चक्की देखकर दिया कबीरा रोए
दुई पाटन के बीच में साबुत बचा न कोए
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